एक अच्छे नेता के गुण डॉ रमेश पोखरियाल निशंक मे बचपन से ही देखे जा सकते थे। जो भविष्य में होने वाला होता था, वह उसे पहले ही भांप लेते थे। जब डॉ रमेश पोखरियाल निशंक प्राथमिक कक्षा मे थे तो वह कक्षा प्रतिनिधि ही नहीं थे अपितु एक हेडब्वॉय की तरह कक्षा की सारी जिम्मेदारी भी लेते थे। इसके बाद वह हाईस्कूल मे कक्षा प्रतिनिध बने।
वह अपने गांव से 8 किलोमीटर दूर दान्देवाल पैदल चलकर स्कूल जाते थे। इसके बाद वह आरएसएस के माध्यम से जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संपर्क मे आए। उनकी सहभागिता उत्तरांचल उत्तराखंड राज्य के आंदोलन में अचानक हुई थी।
सन 1987 मे जब भारतीय जनता पार्टी (उत्तरांचल प्रदेश संघर्ष समिति) स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रही थी, तब डॉ रमेश पोखरियाल निशंक भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता के रूप मे नियुक्त हुए।
सन 1985 मे अध्यापक का पद छोड़ने के बाद जब डॉ रमेश पोखिरयाल निशंक ने पौढी से एक पत्रिका और अखबार निकाला तब श्री देवेंद्र शास्त्री और श्री गजेंद्र निथानी जो उस समय बीजेपी के पिलर समझे जाते थे, डॉ रमेश पोखिरयाल निशंक को जिलाध्यक्ष पद पर नियुक्त करना चाहते थे लेकिन उन्होंने कोई भी राजनैतिक जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था। यद्यिप उत्तरांचल के राज्य आंदोलन मे वे अचानक ही सक्रिय हुए। राज्य आंदोलन के समय कई बार गिरफ्तार हुए और वे बहुत जल्द ही रामजन्म भूमि आंदोलन क्रिय हुए और लगातार भूमिगत रूप से काम करते रहे।
वे रामजन्म भूमि आंदोलन के समय कुछ लोगों जैसे अशोक सिंघल और शंकराचार्य स्वामी वासु देवानंद जी स्वामी रीतांबर जी तथा उमा भारती के सीधे संपर्क में आये। उसके बाद उन्होंने कुछ सांस्कृतिक आंदोलन मे अपने विचार व्यक्त किये और नौजवानों के प्रशंसक बन गये।
सन 1989 के चलते वो कंपनी के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगे और चुनाव अभियान के लिए वहां जाने लगे। यद्यपि वो एक स्कूल के प्रधान अध्यापक भी थे। 1991 मे आधे कार्यकाल में जब लोकसभा और विधानसभा एक साथ निर्धारित हुई तब भारतीय जनता पार्टी उनका नाम कर्णप्रयाग निर्वाचन क्षेत्र से दे चुके थे। उस समय राज्य ऑफिस के प्रभारी अधिकारी श्री गजेंद्र निथानी ने उन्हें लखनऊ बुलाया और चुनाव के लिए मनाने की कोशिश की।
मुरली मनोहर जोशी ने भी उन्हें प्रतिस्पर्धी चुनाव के लिए मना किया। उसके बाद अपने दोस्तों शुभचिंतकों और निर्वाचन संघ के सदस्यों से सलाह करके अपना नामांकन भर दिया।
डॉ शिवानंद के खिलाफ नामांकन भरने के बाद जब उन्होंने अपना चुनाव अभियान शुरू किया तो उन्हें बहुत जन समर्थन मिला। उनकी प्रसिद्धि महिलाओं और नौजवानों के बीच मे देखी जा सकती थी। जब वो बैठक आयोजित करते थे तो बहुत बड़ा जन समूह इकट्ठा हो जाता था। कांग्रेस के मुख्य उम्मीद्वार डॉ शिवानंद नौटियाल पिछले 24 सालों से जमे हुए थे। जवान निशंक के सामने वे एक प्रकाशित बिंदु की तरह लगते थे। डॉ शिवानंद नौटियाल अपनी हर वैठक में बोल रहे थे कि भारतीय जनता पार्टी ने एक छोटे से लड़के को खड़ा किया जो यूपी विधानसभा के लिए देख पाना मुश्किल होगा।
उनकी यह बात निशंक को छोटा बालक बोलना जनसमूह मे आक्रोश लाता था। इसका नतीजा यह हुआ कि जनता भी डॉ निशंक के काफिले में जुड़ गयी और अपनी पहली कोशिश मे डॉ निशंक चुनाब जीत गये और यूपी विधानसभा में पहुंचे। यूपी की जनता डॉ नौटियाल के हारने पर चकित हुई और डॉ निशंक, जिसने डॉ नौटियाल को हराया, को देखने के लिए विशाल जनसमूह उमड़ पड़ा और यूपी विधानसभा का हर व्यक्ति चाहे वह एमएलए हो या स्टाफ डॉ निशंक से मिलने के लिए बहुत इच्छुक थे। जब यूपी विधानसभा का अधिवेशन शुरू हुआ, तो डॉ निशंक ने अपनी प्रतिभा को सिद्ध किया और बहुत जल्द ही लोकप्रिय हो गये। और यूपी विधानसभा अपने बहुत ही कम समय में बहुत-सी महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य बने।
लेकिन डेढ़ साल बाद 6 दिसंबर 1992 सरकार ने रामजन्म भूमि अयोध्या मामले को खारिज नहीं किया अपितु विधानसभा को भी भंग किया और 1993 मे पुन: चुनाव हुए। इस समय सारे दल निशंक के विरोध में थे। यह चुनाव डॉ निशंक के लिए बहुत ही चुनौतीपूर्ण था। बहुत-सी बाधाओं और संघर्ष के बाद लोगों ने उन्हें जिताया और यूपी विधानसभा दोबारा पहुंचाया। इस चुनाव में पैसा और ताकत दोनों ही उनके विरुद्ध थे। डॉ निशंक के दोस्तों और शुभचिंतकों का जीना और मुश्किल हो गया। दूरदराज से आये सामाजिक तत्व उनके चुनाव समूह में उनके वोटरों को धमकाने के आदी हो गये। लेकिन उनके वोटर अटल थे। ये डॉ निशंक के लिए एक चमत्कारिक जीत थी। आखिरकार वह विधानसभा में पहुंच गये।
Sunday, October 18, 2009
श्री रमेश पोखरियाल निशंक की राजनीतिक यात्रा
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